जयपुर। साल के शुरुआत में एसीबी के कार्यवाहक डीजीपी हेमंत प्रियदर्शी का एक आदेश जी का जंजाल बन गया। आखिरकार हेमंत प्रियदर्शी कौनसे भ्रष्ट अधिकारियों को बचाना चाहते है। इन दिनों सरकार विपक्ष और मीडिया के निशाने पर है। यहां तक की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी इस पर सफाई देनी पड़ रही है। वहीं प्रियदर्शी के इंटर ऑफिस का आदेश भ्रष्टाचारियों को बचाने का काम कर रहा है।

सीएम बचाने चाहते हैं भ्रष्टाचारियों को

डॅा. किरोड़ी लाल मीणा का आरोप है कि एसीबी अच्छा काम कर रही है लेकिन आरोपियों पर कार्यवाही के लिए अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलती। जिसके चलते वे लगातार बचते रहते है। अब हेमंत प्रियदर्शी का एक आदेश भ्रष्ट अधिकारियों के चेहरे और नाम दोनों छिपाएगा। तो आखिर उनको डर किस बात का रहेगा। वे भ्रष्टाचार भी करेंगे और उनका नाम पता भी नहीं पता लग सकेगा तो वे फिर तो खुलकर भ्रष्टाचार करेंगे। क्योंकि अभी कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े जाने वाले अधिकारियों की सामाजिक प्रतिष्ठा तो धूमिल होती ही है। एसीबी रंगे हाथों रिश्वत लेते गिरफ्तार करती है। इसलिए ये कहना कि आरोप सिद्द होने और कोर्ट का निर्णय आने के बाद ही नाम और फोटो छपे सरासर गलत है।

मुख्यमंत्री गहलोत भी प्रियदर्शी के फैसले से नाराज

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एसीबी के कार्यवाहकक डीजीपी हेमंत प्रियदर्शी के आदेश से खफा है। माना जा रहा है कि जल्द ये आदेश वापस ले लिया जाएगा। सीएम तो यहां तक बोल गए कि मेरा वश चले तो दुष्कर्मी और गैंगस्टरों को सिर के बाल कटवाकर सार्वजनिक रुप से बाजर में पब्लिक परेड कराएं। उऩ्होंने कहा कि जल्द ही इसका परीक्षण कराएंगे । आवश्यक होने पर आदेश को वापस करेंगे। हमारा मकसद किसी भी भ्रष्टाचारियों को बचाना बिल्कुल भी नहीं है।

हेंमत प्रियदर्शी बोले ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या

एसीबी के कार्यवाहक डीजीपी हेमंत प्रियदर्शी ने सुप्रीम कोर्ट 2014 के जिस फैसले का हवाला देते हुए आरोपियों के नाम और फोटो सार्वजनिक नहीं कर सकते। अधिवक्ताओं का कहना है कि ये सिर्फ एनकाउंटर में होने वाली मौतो की गाइडलाइन के लिए था। इस फैसले में यह कहीं भी लिखा हुआ है कि भ्रष्टाचारी और अपराधियों के फोटो और नाम नहीं छाप सकते। कहीं न कहीं प्रियदर्शी ने इसकी गलत व्याख्या की है।

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